जय उत्तराखण्ड
उत्तराखण्ड और यहाँ के गौरवशाली ऐतिहासिक वीर योद्धाओ के वीरता व साहस के किस्से पूरे भारत वर्ष मे थे।
कहावत है कि उस समय उत्तराखण्ड मे ऐसे रणबाँकुरो का शासन रहा है जिन से उस समय ब्रिटिश सेना भी डरती थी।ऐसे महान शूर-वीरो की जन्म-भूमि उत्तराखण्ड आज अपने अतीत व आज की लडाई मे लड रहा है।
मै आज आपका ध्यान उन समस्त शूर-वीरो की जन्म-भूमि की ओर ले चलता हूँ।
जहाँ से वीर कफ्फू चौहान,तीलू रौतेला जैसे अनगिनत वीरांगनाये व भड निकले।
मै आज आपको अपने उत्तराखण्ड की पुरानी मिट्टी की याद दिलाना चाहता हूँ।
मै आपको उत्तराखण्ड के ऐतिहासिक 52 गढों के बारे मे बताना चाहता हूँ ये जानकारी विभिन्न स्रोतों से प्राप्त की गयी है कही भी गलती हो तो खेद है।आपसे अनुरोध है कि कृपया मेरा भी मार्ग-दर्शन करे।
चाँदपुर गढ़ (चाँदपुर)
चाँदपुर गढ़ का इतिहास ही अपने आप में लोकप्रिय व एतिहासिक रहा है।
खश गढ़पति सूर्यवंशीय भानुप्रताप पाल की राजधानी उसके बाद पँवार वंश के संस्थापक कनकपाल की राजधानी रही।
इसी वंशावली के अनुसार यहाँ 37 पँवार नरेशों ने शासन किया।
इसकी एतिहासिक पृष्ठभूमि को समझते हुए 2004 में भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसका जीर्णोद्वार किया।
चाँदपुर गढ़ का इतिहास ही अपने आप में लोकप्रिय व एतिहासिक रहा है।
खश गढ़पति सूर्यवंशीय भानुप्रताप पाल की राजधानी उसके बाद पँवार वंश के संस्थापक कनकपाल की राजधानी रही।
इसी वंशावली के अनुसार यहाँ 37 पँवार नरेशों ने शासन किया।
इसकी एतिहासिक पृष्ठभूमि को समझते हुए 2004 में भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसका जीर्णोद्वार किया।
चौंड़ागढ़ (चाँदपुर)
इस गढ़ के बारे में उत्तराखंड के लोगों में एक लोकोक्ति "तोपलों की तोप-ताप,
चौंडलियों को राज, चौंडाल ठाकुरीगढ़" से ही इसकी विशेषता जानी जाती है।
तोपगढ़ (चाँदपुर)
इस गढ़ के बारे में उत्तराखंड के लोगों में एक लोकोक्ति "तोपलों की तोप-ताप,
चौंडलियों को राज, चौंडाल ठाकुरीगढ़" से ही इसकी विशेषता जानी जाती है।
प्रतापी गढ़पति तुलसिंह जिसने तोप ढलवायी थी,
इसे तोपल ठाकुरी गढ़ के नाम से भी जाना गया।
इसे तोपल ठाकुरी गढ़ के नाम से भी जाना गया।
राणिगढ़ (चाँदपुर)
खाती ठाकुरी गढ़।
खाती ठाकुरी गढ़।
कोलपुरगढ़ या कौलपुरगढ़ (चाँदपुर)
कोब गाँव के कुछ दूरी पर कौनपुरगढ़ है,
जहाँ प्राचीन अवशेष मिले,
जिसके बारे में यह कहा गया कि यह राजा कनकपाल का गढ़ था ।
कोब गाँव के कुछ दूरी पर कौनपुरगढ़ है,
जहाँ प्राचीन अवशेष मिले,
जिसके बारे में यह कहा गया कि यह राजा कनकपाल का गढ़ था ।
बधाणगढ़ (बधाण)
यह गढ़ पिंडर नदी के किनारे बधाणी ठाकुरों का गढ़ रहा है।
यह गढ़ पिंडर नदी के किनारे बधाणी ठाकुरों का गढ़ रहा है।
लहुबागढ़ (चाँदपुर)
रामगंगा कि बायीं ओर स्थित है।
नदी से लंबी सुरंग ही इसका अस्तित्व मिलता है।
दिलेश्वर सिंह और प्रमोद सिंह यहाँ के प्रतापी गढ़पति थे।
रामगंगा कि बायीं ओर स्थित है।
नदी से लंबी सुरंग ही इसका अस्तित्व मिलता है।
दिलेश्वर सिंह और प्रमोद सिंह यहाँ के प्रतापी गढ़पति थे।
जोन्यगढ़ (अजमीर पल्ला)
सेनापति माधो सिंह भण्डारी ने पहली बार युद्ध में जोन्यगढ़ जीता।
सेनापति माधो सिंह भण्डारी ने पहली बार युद्ध में जोन्यगढ़ जीता।
ईड़ागढ़ (रवाई, बड़कोट)
इस गढ़ के बारे में दो मत हैं,
(1)---जिसमें पहला कर्णप्रयाग-नौटी मोटर मार्ग (आदिबद्री के समीप) पर मजियाड़ा गाँव के पास टीले जहाँ प्राचीन ईड़ा-बधाणी गाँव था वहीं ईड़ागढ़ था।
(2)---दूसरा मत रवाईं का यह गढ़ किसी रुपचन्द नमक ठाकुर द्वारा बनाया गया था।
Read Also - वह पावन भूमि जहाँ शिव के साथ विराजमान है माँ भगवती माँ काली और हनुमानजी ।
इस गढ़ के बारे में दो मत हैं,
(1)---जिसमें पहला कर्णप्रयाग-नौटी मोटर मार्ग (आदिबद्री के समीप) पर मजियाड़ा गाँव के पास टीले जहाँ प्राचीन ईड़ा-बधाणी गाँव था वहीं ईड़ागढ़ था।
(2)---दूसरा मत रवाईं का यह गढ़ किसी रुपचन्द नमक ठाकुर द्वारा बनाया गया था।
Read Also - वह पावन भूमि जहाँ शिव के साथ विराजमान है माँ भगवती माँ काली और हनुमानजी ।
धन्यागढ़ (ईड़वल्स्यूं)
धौन्याल ठाकुरी गढ़।
धौन्याल ठाकुरी गढ़।
साबालीगढ़ (मल्ला सलाण, साबली)
साबालिया बिष्टों का गढ़।
साबालिया बिष्टों का गढ़।
गुजड़गढ़ (मल्ला सालाण)
सिली गाँव से गढ़ तक सोपानयुक्त सुरंग, लगभग छः घेरे में गहरी खाइयाँ तथा दुर्ग के ध्वंस अवशेष विधमान हैं।
सिली गाँव से गढ़ तक सोपानयुक्त सुरंग, लगभग छः घेरे में गहरी खाइयाँ तथा दुर्ग के ध्वंस अवशेष विधमान हैं।
बदलपुर गढ़ (तल्ला सालाण)
चिणबौ से ऊपरी गढाधार पर्वत जहाँ गढ़ के अवशेष विराजमान है।
चिणबौ से ऊपरी गढाधार पर्वत जहाँ गढ़ के अवशेष विराजमान है।
दशौलीगढ़ (दशौली)
यह गढ़ राजा मानवर का गढ़ रहा है।
यह गढ़ राजा मानवर का गढ़ रहा है।
देवलगढ़ (देवलगढ़)
इस गढ़ का पूरा नाम वित्वाल के नाम से जगत गढ़ था।
12वीं शताब्दी में कांगड़ा नरेश देवल के नाम से इस गढ़ का नाम देवलगढ़ रखा गया।
इस गढ़ को राजा अजयपाल ने अपने अधीनस्थ कर लिया था ।
इस गढ़ का पूरा नाम वित्वाल के नाम से जगत गढ़ था।
12वीं शताब्दी में कांगड़ा नरेश देवल के नाम से इस गढ़ का नाम देवलगढ़ रखा गया।
इस गढ़ को राजा अजयपाल ने अपने अधीनस्थ कर लिया था ।
नायलगढ़ (देवलगढ़)
यह गढ़ अंतिम ठाकुर भग्गु का था।
यह कठलीगढ़ के समीप है।
यह गढ़ अंतिम ठाकुर भग्गु का था।
यह कठलीगढ़ के समीप है।
अजमेरी गढ़ (गंगसलण)
यह गढ़ मुख्य रूप से चौहनों व पयालों का गढ़ रहा है।
इस गढ़ को हुसैनख़ान टुकड़िया ने लूटा था।
यह गढ़ मुख्य रूप से चौहनों व पयालों का गढ़ रहा है।
इस गढ़ को हुसैनख़ान टुकड़िया ने लूटा था।
कोलीगढ़ (देवलगढ़)
यह गढ़ बछ्वाण ठाकुरी के अंतर्गत रहा है।
यह गढ़ बछ्वाण ठाकुरी के अंतर्गत रहा है।
लोइगढ़ (देवलगढ़)
इस गढ़ का वर्तमान नाम ल्वैगढ़ है।
इस गढ़ का वर्तमान नाम ल्वैगढ़ है।
नवासुगढ़ (देवलगढ़)
नावसु गाँव के अंतर्गत अकालगढ़ के रूप में भी जाना जाता है,
परंतु इस बारे में अभी को पूर्ण साक्ष्य नहीं है।
नावसु गाँव के अंतर्गत अकालगढ़ के रूप में भी जाना जाता है,
परंतु इस बारे में अभी को पूर्ण साक्ष्य नहीं है।
भुवनागढ़ (देवलगढ़)
जानकारी उपलब्ध नही है।
जानकारी उपलब्ध नही है।
लोधाण्यागढ़
जानकारी उपलब्ध नही है।
जानकारी उपलब्ध नही है।
हियणीगढ़
जानकारी उपलब्ध नही है।
जानकारी उपलब्ध नही है।
डौणीघआनगढ़
भुवनागढ़ के बाद इस गढ़ का उल्लेख मिलता है।
सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध नही है।
भुवनागढ़ के बाद इस गढ़ का उल्लेख मिलता है।
सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध नही है।
नागपुरगढ़ (नागपुर)
यह गढ़ अंतिम ठाकुरी राजा भजन सिंह का था।
इस गढ़ में नाग देवता का मंदिर स्थापित है।
यह गढ़ अंतिम ठाकुरी राजा भजन सिंह का था।
इस गढ़ में नाग देवता का मंदिर स्थापित है।
कोटागढ़ (जौनपुर)
इस गढ़ का वर्णन काँड़ागढ़ के नाम से उल्लेख मिलता है,
जिसमें बिष्ट ठाकुरी गढ़ भी कहा गया है।
इस गढ़ का वर्णन काँड़ागढ़ के नाम से उल्लेख मिलता है,
जिसमें बिष्ट ठाकुरी गढ़ भी कहा गया है।
कंडारागढ़ (नागपुर)
दुमागदेश नरेश मंगलसेन जो कि एक प्रतापी राजा था,
लेकिन बाद में अजय पाल ने इस गढ़ पर आक्रमण कर जीत लिया।
हालांकि इस गढ़ के बारे में भी अनेक मत हैं।
दुमागदेश नरेश मंगलसेन जो कि एक प्रतापी राजा था,
लेकिन बाद में अजय पाल ने इस गढ़ पर आक्रमण कर जीत लिया।
हालांकि इस गढ़ के बारे में भी अनेक मत हैं।
लंगूरगढ़ (गंगा सलाण)
इस गढ़ में भैरव का मंदिर होने के कारण इस गढ़ को भैंरव गढ़ भी कहा जाता है।
इस गढ़ पर असवाल ठाकुरों का राज रहा।
इस गढ़ में भैरव का मंदिर होने के कारण इस गढ़ को भैंरव गढ़ भी कहा जाता है।
इस गढ़ पर असवाल ठाकुरों का राज रहा।
पावगढ़ या मावगढ़ (गंगा सलाण)
गढ़वाल के सात गढ़ों में से एक बताया जाता है।
भानधा और भानदेव असवाल का शासन रहा।
गढ़वाल के सात गढ़ों में से एक बताया जाता है।
भानधा और भानदेव असवाल का शासन रहा।
इडवालगढ़ (बारहस्यूं)
जानकारी उपलब्ध नही है।
जानकारी उपलब्ध नही है।
बागड़ीगढ़ (गंगा सलाण)
बागड़ी या बगुड़ी (नेगी) जाति का गढ़।
Read Also- क्या महत्व है उत्तराखंड की गर्जिया माँ का।
बागड़ी या बगुड़ी (नेगी) जाति का गढ़।
Read Also- क्या महत्व है उत्तराखंड की गर्जिया माँ का।
गड़कोटगढ़ (गंगा सलाण)
बगडवाल बिष्टों का गढ़।
बगडवाल बिष्टों का गढ़।
खत्रीगढ़ (रवाई)
गोरखा आक्रमण से पहले यह गढ़ नदी के दायीं तट पर स्थित है।
गोरखा आक्रमण से पहले यह गढ़ नदी के दायीं तट पर स्थित है।
जौनपुरगढ़ (जौनपुर)
यमुना के बाएँ किनारे पर स्थित यह गढ़ के पास अगलार-यमुना का संगम है।
यमुना के बाएँ किनारे पर स्थित यह गढ़ के पास अगलार-यमुना का संगम है।
फल्याणगढ़ (बारहस्युं)
इस गढ़ के गढ़पति शमशेर सिंह के अधीन रहा,
उन्होने इस गढ़ को फल्याण ब्राह्मणों को दान दे दिया था।
इस गढ़ के गढ़पति शमशेर सिंह के अधीन रहा,
उन्होने इस गढ़ को फल्याण ब्राह्मणों को दान दे दिया था।
नैलचामिगढ़ (भील्लंग)
स्वाति ग्राम क्षेत्र मेन संगेला बिष्टों का गढ़।
बारहगढ़ (भरदार) मन्दाकिनी की दायीं ओर लस्तूर तथा डिमार की उपरली घाटी में स्थित है।
स्वाति ग्राम क्षेत्र मेन संगेला बिष्टों का गढ़।
बारहगढ़ (भरदार) मन्दाकिनी की दायीं ओर लस्तूर तथा डिमार की उपरली घाटी में स्थित है।
बारहगढ़ (भरदार)
मन्दाकिनी की दायीं ओर लस्तूर तथा डिमार की उपरली घाटी में स्थित है।
मन्दाकिनी की दायीं ओर लस्तूर तथा डिमार की उपरली घाटी में स्थित है।
कठूडगढ़ (चिल्ला)
जानकारी उपलब्ध नही है।
जानकारी उपलब्ध नही है।
भरदरगढ़ (भरदार)
अलकनंदा की दायीं ओर स्थित यह गढ़ तीन ओर से चट्टान,
उत्तर से प्रवेश का दुर्गम मार्ग।
कहा जाता है कि मृत्यु दण्ड वाले बंदियों को यहाँ छोड़ा जाता था।
अलकनंदा की दायीं ओर स्थित यह गढ़ तीन ओर से चट्टान,
उत्तर से प्रवेश का दुर्गम मार्ग।
कहा जाता है कि मृत्यु दण्ड वाले बंदियों को यहाँ छोड़ा जाता था।
चौंदकोटगढ़ (चौंदकोट)
प्राचीरों, खाइयों सहित गढ़ों के अवशेष यहाँ विधमान हैं।
प्राचीरों, खाइयों सहित गढ़ों के अवशेष यहाँ विधमान हैं।
बनगढ़ (बनगढ़)
अलकनन्दा की दायीं ओर,
यह गढ़ सोनपाल के अधीन रहा।
यहाँ पर राजराजेश्वरी का प्राचीन मंदिर है।
अलकनन्दा की दायीं ओर,
यह गढ़ सोनपाल के अधीन रहा।
यहाँ पर राजराजेश्वरी का प्राचीन मंदिर है।
भिलागगढ़ (भील्लंग)
24वां पँवारवंश राजा सोनपाल का शासन रहा।
खाल ग्राम में गंवानागाड़ व भिल्लंगना के संगम पर स्थित है।
24वां पँवारवंश राजा सोनपाल का शासन रहा।
खाल ग्राम में गंवानागाड़ व भिल्लंगना के संगम पर स्थित है।
हिंदाऊगढ़ (भील्लंग, हिंदाव)
चांजी गाँव के समीप भवन के अवशेष से इस गढ़ का अस्तित्व सामने आया।
चांजी गाँव के समीप भवन के अवशेष से इस गढ़ का अस्तित्व सामने आया।
कुईलीगढ़ (नरेन्द्रनगर)
भागीरथी की दायीं ओर कोटग्राम के समीप स्थित है।
गढ़ में घंटाकर्ण का मंदिर भी है।
भागीरथी की दायीं ओर कोटग्राम के समीप स्थित है।
गढ़ में घंटाकर्ण का मंदिर भी है।
सिलगढ़ (भरदार, सिलगढ़)
मन्दाकिनी नदी की दायीं ओर कोटग्राम के समीप स्थित है।
इस गढ़ के अंतिम गढ़पति सबल सिंह सजवाण रहे।
मन्दाकिनी नदी की दायीं ओर कोटग्राम के समीप स्थित है।
इस गढ़ के अंतिम गढ़पति सबल सिंह सजवाण रहे।
चंवागढ़ (उदयपुर, मन्यार)
जानकारी उपलब्ध नही है।
जानकारी उपलब्ध नही है।
भरपूरगढ़ (नरेंद्रनगर)
गंगा की दायीं ओर, तैडीगढ़ के पश्चिम क्षोर पर स्थित है।
इस गढ़ के गढ़पति अमरदेव तथा तैड़ीगढ़ के गढ़पति तनया तिलोमा थे।
गंगा की दायीं ओर, तैडीगढ़ के पश्चिम क्षोर पर स्थित है।
इस गढ़ के गढ़पति अमरदेव तथा तैड़ीगढ़ के गढ़पति तनया तिलोमा थे।
मुंजणीगढ़ (नरेन्द्रनगर)
इस गढ़ के अंतिम गढ़पति सुलतान सिंह सजवाण थे।
इस गढ़ के अंतिम गढ़पति सुलतान सिंह सजवाण थे।
उपुगढ़ (उदयपुर)
कफ़्फ़ु चौहान इस गढ़ के गढ़पति थे,
जिसे राजा अजयपाल ने अपने अधीन किया था।
कफ़्फ़ु चौहान इस गढ़ के गढ़पति थे,
जिसे राजा अजयपाल ने अपने अधीन किया था।
मूंगरागढ़ (रवाई)
इस गढ़ तीनों दिशाओं में यमुना बहती है तथा दक्षिण से इस गढ़ तक पहुँचने के लिए चट्टान काटकर चढ़ने के लिए सोपान बने हैं, इस गढ़ में अब रौंतेला ठाकुरों के घर हैं।
इस गढ़ तीनों दिशाओं में यमुना बहती है तथा दक्षिण से इस गढ़ तक पहुँचने के लिए चट्टान काटकर चढ़ने के लिए सोपान बने हैं, इस गढ़ में अब रौंतेला ठाकुरों के घर हैं।
रेकागढ़ (प्रतापनगर)
इस गढ़ का नाम उपली रमोली के एक गाँव के नाम पर है।
इस गढ़ का नाम उपली रमोली के एक गाँव के नाम पर है।
चोलागढ़ (प्रतापनगर)
मोल्या गाँव के समीप इस गढ़ के अन्तिम गढ़पति घांगू रमोला थे।
मोल्या गाँव के समीप इस गढ़ के अन्तिम गढ़पति घांगू रमोला थे।
पैनखंडागढ़ (पैनखंडा)
यह गढ़ बुठेर जाति का गढ़ माना जाता है।
यह गढ़ बुठेर जाति का गढ़ माना जाता है।
प्राचीन काल के गढ़- पतियो का घर
प्राचीन राजधानी चाँदपुर गढ़ी का एक दृश्य
52 गढ़ो मे से एक तोपगढ़ का दृश्य