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गढ़वाल के कुछ वीर गढ़रत्न कौन थे ?

गढ़रत्न

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- लोदी रिखोला गढ़वाल के भीम इतने शक्तिशाली पहलवान थे की नजीबाबाद के किले के मुख्य द्वार को उखाड़कर स्वयं रिखनी ख़ाल उठाकर ले आये थे 

- पन्थ्या काला ने तत्कालीन राजा के काले कानून का निरंतर तीव्र विरोध कर सत्याग्रह करते हुए अंत में आत्म दाह कर काले कानून को समाप्त करवा कर ही जनता को राहत दिलाई 

- माधो सिंह भंडारी शूरमा थे जिन्होंने मलेथा जैसी ऊसर भूमि के लिए गूल निकालने के लिए ही पहाड़ काटकर एक नहर बना दी जिसके लिए उन्होंने अपने एकमात्र पुत्र की बलि दे दी थी!

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- गढ़ भूमि की लक्ष्मीबाई कहलाने वाली वीरांगना तीलू रौतेली ने गढ़वाल की पूर्वी सीमा पर आक्रमणकारी एवं अत्याचारी कत्यूरों से निरंतर सात वर्षों तक जूझते हुए त्रस्त सीमान्त जनता को राहत की सांस दिलाई !
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- अंग्रेजी राज्य में शौर्यपुन्ज दरबान सिंह नेगी तथा गबर सिंह नेगी ने द्वितीय महायुद्ध के दौरान फ़्रांस में दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए और मरणोपरांत विक्टोरिया क्रोस नामक तत्कालीन सर्वोच्च शौर्य पदक प्राप्त कर गढ़वाल का नाम रोशन किया   !
- दूसरे  महायुद्ध के दौरान ही तोता राम थपलियाल ने एक विशेष गढ़वाली पलटन खड़ी की और उसका नेतृत्व कर अपूर्व साहस व शौर्य का परिचय देकर सम्मान खडग (स्वोर्ड ऑफ़ हॉनर ) प्राप्त किया !

- इसी अंग्रेजी शासन काल में पेशावर कांड के नायक चन्द्रसिंह गढ़वाली ने अपने ही भारतीयों पर गोली न चलाने की हुक्म उदूली करके भारतीय सेना में स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सर्वप्रथम पहल की !

- शहीद श्रीदेव सुमन ने अपने अंचल को तत्कालीन राजतन्त्र से मुक्ति दिलाने के लिएकठिन एवं अमानवीय यातनाएं झेलते हुए अपना बलिदान दे दिया !

- गढ़ चाणक्य कहलाने वाले वीर पुरिया नैथानी ने सुन्नी मुसलमान शहंशाहे -हिंद औरंगजेब के दरबार में जाकर निर्भयतापूर्वक अरबी -फारसी में वार्तालाप कर अपने वाक्चातुर्य से गढ़वाल राज्य को जजिया कर से मुक्ति दिलाई ! 
और सय्यद मुस्लमान से कोटद्वार भाभर के इलाके को मुक्त करवाया और इस्लामी सेना द्वारा गढ़वाल के मंदिरों को तोड़ने से रुकवाया !

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१० - सन १९६२ के भारत चीन युद्ध में ३०० चीनी सैनिको को मौत की नींदसुलाकर भारत माँ की रक्षा करते हुए खुद भी अरुणांचल की तवांग घाटीें सदा के लिए सोया वीर जवान जसवंत सिंह आज भी जसवंत गढ़ में अपनी ड्यूटी दे रहा है! जो आज भी ड्यूटी के दौरान जवानों को सोने नहीं देता !

ऐसे गढ़ गौरवों के महान  कार्य  जनमानस में केवल पवाड़ों, चौफ्लों ,थडिया गीतों तथा जागरों तक ही सीमित हैं !
बहुत ही खेद का विषय है कि इन्हें पुस्तकों में जोड़नें की किसी ने भी कभी  कोशिश नही की
 । जय हो इन वीरआत्माओं की 
         । इन्हें नमन ।
    


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